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About The Book
Description
Author
शेख़ मोहम्मद इब्राहिम 'ज़ौक़' का शुमार उर्दू भाषा के उस्ताद शाइरों में किया जाता है। जिन दिनों दिल्ली में अकबर शाह ने 'ज़ौक़' को 'ख़ाकान ए हिन्द' की उपाधि देकर सम्मानित किया उस समय 'ज़ौक़' की आयु मात्र उन्नीस बरस थी। बाद में उन्हें 'मलिक उल शुआरा' उपाधि भी प्रदान की गयी। हालांकि 'ज़ौक़' का रंग-रूप सांवला था और उनके चेहरे पर चेचक के दाग़ भी थे परन्तु अपने पहनावे अपनी चाल-ढाल तथा मुशाइरों में अपनी ऊंची और खनकदार आवाज़ में ग़ज़ल पढ़कर वह जनता का दिल लूटने में सफल हो जाते थे।'ज़ौक़' की ग़ज़लों को पढ़ने से यह सिद्ध हो जाता है कि मज़्मूनों का नयापन ज़बान की मिठास मुहावरों का कसैलापन और इन सबका उचित प्रयोग उनके कलाम की विशेषताएं हैं। 'ज़ौक़' की शाइरी में अलंकारों का विशेष स्थान है लेकिन फिर भी उनकी शाइरी की ज़बान आम आदमी की ज़बान लगती है।'ज़ौक़' की शाइरी आज भी लब्धप्रतिष्ठ मानी जाती है। इस बात का प्रमाण 'ज़ौक़' का यह शे'र है -लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले।अपनी ख़ुशी न आए न अपनी ख़ुशी चले।. या फिर ये शे'र -एहसान नाख़ुदा के उठाये मेरी बला।कश्ती ख़ुदा पे छोड़ दूँ लंगर को तोड़ दूं।. उसी उस्ताद शाइर की चुनिन्दा ग़ज़लें हमने इस संकलन में एकत्र की हैं जिन्हें पढ़कर आप भी 'ज़ौक़' की क़लम का लोहा मान जायेंगे।