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About The Book
Description
Author
बोधिधर्म द्वारा छठी सदी में चीन ले जाया गया ज़ेन मूलतः संस्कृत का ध्यान ही था। चीन में यह चा 'न हो गया चा'न से चेन और कालान्तर में जापान पहुँचकर यही ज़ेन हो गया।<br>ज़ेन की समझ के लिए आपको पारदर्शी ईमानदार सजग और उत्तरदायी होना पड़ता है जैसे सदियों से जेन-विद्यार्थी होते आए हैं।<br>ज़ेन एक स्वाद है स्वयं में होने का।<br>ज़ेन एक दृष्टिकोण है जीवन को समझने का!<br>ज़ेन एक ढंग है कला है!<br>सुदूर-पूर्वी दुनिया में ज़ेन गुरुओं के साहसिक अभियानों से ही ज़ेन-साहित्य और जो उसके परे है वह भी विकसित हुआ फला-फूला। इसकी सुगंध आज भी वैसी ही ताजी है जैसी यह इसकी उत्पत्ति के समय रही होगी।<br>आस्था नहीं प्रयोग इसका आधार है।