मित्रों इस पुस्तक के लेखन का मनोभाव अचानक उत्पन्न हुआ। एक दिन घर की सफाई में कुछ पुराने एल्बम मिल गये। इसमें एक ऐसा चित्र मिल गया जो करीब ३० वर्ष पुराना था जब हम परिवार के साथ मंसूरी गये थे वहां पत्नी के साथ फोटो खिचवायें थे जो इस उम्र में अब यादगार लगा सोचा क्यों न इसे स्मरणीय बनाया जावे फिर मन में पुस्तक का नाम व भाव आया कि जिन्दगी मेरी तुम्हारी के नाम से अपने जीवन पर कुछ लिखा जाय जो अन्य लोगों के लिए प्रेरणास्पद बनें। दोस्तों यह बताना चाहता हूं कि ग्रामीण परिवेश से एक मध्यम वर्गीय ब्राह्मण परिवार से न्यायाधीश पद तक पहुंचने व उसके बाद के पारिवारिक जिम्मेदारियों के निर्वहन विवाह बच्चों के जन्म पढ़ाई नौकरी शादी भाई-बहन की जिम्मेदारी आदि विषयों को रखकर रोचक प्रेरणास्पद व कहीं कहीं हास्य पुट देने का प्रयास किया है। इसे खण्ड काव्य के रूप में लिखा गया है और विभिन्न सगों में रखा गया है जिसमें बाल सर्ग मिलन सर्ग ससुराल सर्ग कर्तव्य सर्ग उत्तर सर्ग जैसे विभिन्न सर्गों को रखकर रोचक बनाने का प्रयास किया गया है। यह पति पत्नी का मुख्यतः संवाद है जिसमें जन्म पढ़ाई-लिखाई से लेकर पारिवारिक जीवन की समस्यायें विवाह नौकरी पति-पत्नी का प्रेम समर्पण संघर्ष मनोविनोद गांव से लेकर शहर तक का वातावरण जज के रूप में विभिन्न जिलों की पोस्टिंग के संबन्ध में हमारा जीवन क्या आम जन को प्रेरणा देता है जीवन की कुछ नीति परक बातें आदि को रखने का प्रयास किया गया है। आशा ही नहीं विश्वास भी है कि यह मेरी भावनाओं से आपकों अवश्य प्रभावित करेगा। आपके सुझाव व मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है।आपका अपना- घनश्याम पाठक श्याम।
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