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About The Book
Description
Author
वे अल्फ़ाज़ के दो कुनबों को जोड़ के ज़बान का एक नया ख़ानदान बना देते हैं वे इमेजिन करते हैं तो धरती आसमान के और हवाएँ पानियों के आँगनों से घूम-टहल आते हैं...वे जब मुहब्बत की तरफ़ देखते हैं तो रूह धूप बनकर जिस्म को ढाँप लेती है और जिस्म के खुरदरे कोने पाकीज़ा मुलायमियत में पिघलने लगते हैं और जब समाजी मसायल की तरफ़ मुल्क और मुल्क की ख़लक़त की तरफ़ देखते हैं रिश्तों और दिलों की कशमकश को बेचैनी को देखते हैं तो उनके बोल हमारे लिए हमारी अपनी बात बन जाते हैं। गुलज़ार ने फ़िल्मों के लिए गीत लिखे अभी भ